एक स्कूल की छत का प्लास्टर गिरने की घटना ने प्रशासन में खलबली मचा दी है। अब भला छत का प्लास्टर गिरे और अधिकारी बच जाएं, ऐसा कैसे हो सकता है? घटना पर त्वरित कार्रवाई करते हुए मुख्य शिक्षा अधिकारी (CEO) और खंड शिक्षा अधिकारी (BEO) को तुरंत शोकॉज नोटिस थमा दिया गया। अब यह तय है कि अधिकारी महोदयों को इस सवाल का जवाब देना होगा कि आखिर स्कूल की छत “खुद को गिराने की हालत” में कैसे पहुंच गई।
तुरंत एक्शन, त्वरित रिएक्शन
घटना के बाद, प्रशासन ने सारा मामला गंभीरता से लिया। तहसीलदार साहब को तत्काल बच्चों के घर भेजा गया, ताकि उनकी कुशलक्षेम पूछी जा सके। बच्चों से पूछा गया, “कहीं तुम्हारे सिर पर तो नहीं गिरा?” और बच्चों ने भी मासूमियत से जवाब दिया, “सिर तो बच गया, पर अब स्कूल जाना थोड़ा डरावना लग रहा है।”
बच्चों की सुरक्षा पर बड़ा सवाल
अब सवाल यह उठता है कि ऐसे हादसे क्यों हो रहे हैं? क्या स्कूल की इमारतों की जांच-पड़ताल समय पर नहीं हो रही? या फिर छत का प्लास्टर भी सरकारी कामकाज से परेशान होकर गिरने की सोचने लगा?
सरकार ने सभी खंड विकास और शिक्षा अधिकारियों को आदेश दिया है कि वे अपने-अपने क्षेत्रों के स्कूलों की पूरी स्थिति का प्रमाण पत्र पेश करें। अब देखना यह है कि ये प्रमाण पत्र “सच्चाई” के कितने करीब होते हैं।
एक सीख और चेतावनी

एक सीख और चेतावनी
यह घटना हम सबके लिए एक बड़ी सीख है। बच्चों का भविष्य सिर्फ किताबों और शिक्षकों पर नहीं, बल्कि उनकी सुरक्षा पर भी निर्भर करता है। अगर छत का प्लास्टर गिरता रहा, तो पढ़ाई में “गिरावट” भी तय है।
इसलिए, अगली बार जब आप किसी सरकारी स्कूल की इमारत देखें, तो ऊपर की ओर जरूर देख लें। क्या पता, छत आपको कोई “सरप्राइज” देने की फिराक में हो!
समाधान की राह
हमें उम्मीद है कि इस घटना से सभी संबंधित अधिकारी और प्रशासनिक विभाग कुछ गंभीरता से सीख लेंगे। बच्चों का भविष्य छत के गिरने पर नहीं, बल्कि मजबूत नींव पर टिका होना चाहिए।
आइए, हम सब मिलकर सुनिश्चित करें कि कोई भी स्कूल हादसा न हो और हर बच्चा सुरक्षित और आत्मविश्वास के साथ पढ़ाई कर सके।