पिछले महीने उत्तर प्रदेश में भी नॉर्मलाइजेशन के खिलाफ विरोध प्रदर्शन हुए थे। लेकिन अब बिहार में यह मुद्दा और गरमा गया है।
क्या है नॉर्मलाइजेशन?
जब किसी परीक्षा को कई शिफ्ट्स में आयोजित किया जाता है और अलग-अलग प्रश्न पत्र दिए जाते हैं, तो ‘नॉर्मलाइजेशन’ का उपयोग किया जाता है ताकि सभी अभ्यर्थियों के अंकों को तुलनीय बनाया जा सके। इस प्रक्रिया में अंकों को जोड़ने, घटाने या समायोजित करने का काम होता है, ताकि किसी एक शिफ्ट के अभ्यर्थियों को फायदा या नुकसान न हो। यह प्रक्रिया NEET-UG जैसी कई परीक्षाओं में लागू होती है।
हालांकि, बिहार पब्लिक सर्विस कमीशन (BPSC) ने स्पष्ट किया है कि आगामी 70वीं प्रारंभिक परीक्षा में नॉर्मलाइजेशन लागू नहीं होगा। इसके बावजूद, इस विषय पर विवाद थमने का नाम नहीं ले रहा है।
बिहार में नॉर्मलाइजेशन को लेकर चिंता क्यों?
BPSC के चेयरमैन रवि एस. परमार ने हाल ही में कहा था कि भले ही 70वीं परीक्षा में नॉर्मलाइजेशन लागू न हो, लेकिन इसे 71वीं परीक्षा में लाया जा सकता है। छात्रों को लगा कि यह प्रक्रिया पारदर्शिता खत्म कर सकती है और भ्रष्टाचार का रास्ता खोल सकती है। उन्होंने मांग की कि BPSC लिखित में यह आश्वासन दे कि इस परीक्षा में नॉर्मलाइजेशन नहीं होगा।
बिहार में सरकारी नौकरियां हमेशा से आकर्षण का केंद्र रही हैं। राज्य में कम उद्योग होने के कारण सरकारी नौकरियों की मांग अधिक है। ऐसे में परीक्षा के प्रारूप में किसी भी बदलाव को लेकर छात्रों में आशंका बढ़ जाती है।
13 दिसंबर को होने वाली परीक्षा के लिए करीब 4.25 लाख छात्र पंजीकृत हैं, जिसमें सिर्फ 2,200 सीटें हैं। ऐसे में यह मुद्दा और अधिक संवेदनशील बन गया है।
छात्रों और नेताओं की मांग
छात्र और राजनीतिक दल परीक्षा को एक ही शिफ्ट और एक जैसे प्रश्न पत्रों के साथ आयोजित करने की मांग कर रहे हैं।
पटना के लोकप्रिय शिक्षक खान सर ने कहा,
“मैथ्स जैसे विषयों में समान अंक देना संभव है, लेकिन जनरल स्टडीज में यह कैसे होगा? जब UPSC या अन्य राज्य आयोग इसे अपने सार्वजनिक सेवा परीक्षाओं में लागू नहीं करते, तो BPSC को भी इससे बचना चाहिए।”
छात्र नेता दिलीप कुमार ने कहा,
“एक शिफ्ट और एक प्रश्न पत्र का प्रारूप वर्षों से प्रभावी रहा है। यह सबसे अच्छा तरीका है, जिसमें बदलाव की जरूरत नहीं है।”
राजनीतिक प्रतिक्रिया
इस मुद्दे पर राजनीतिक दल भी मुखर हो गए हैं।
RJD नेता तेजस्वी यादव ने इसे लेकर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार पर निशाना साधते हुए कहा,
“यह थकी हुई और रिटायर्ड सरकार युवाओं की बात सुनती ही नहीं है। आखिरकार इसे उनके साहस के आगे झुकना पड़ता है। मुख्यमंत्री पिछले 10 दिनों से कहां थे, जब पुलिस उनके अधीन है?”
कांग्रेस प्रवक्ता ज्ञान रंजन गुप्ता ने पुलिस लाठीचार्ज की निंदा करते हुए कहा,
“प्रतियोगी परीक्षाओं को एक शिफ्ट और एक प्रश्न पत्र के प्रारूप में आयोजित करना चाहिए।”
वहीं, RJD प्रवक्ता सुबोध कुमार मेहता ने कहा,
“नॉर्मलाइजेशन नीति छात्रों और आयोग के बीच अविश्वास पैदा कर सकती है। मुख्यमंत्री को संवेदनशीलता के साथ युवाओं के भविष्य को देखना चाहिए।”
हालांकि, BJP प्रवक्ता मनोज शर्मा ने कहा कि अब मामला सुलझ चुका है और इसे बार-बार उठाने की जरूरत नहीं है।
पटना में विरोध प्रदर्शन और पुलिस कार्रवाई
6 दिसंबर को जब छात्रों ने पटना में प्रदर्शन किया, तो पुलिस ने लाठीचार्ज कर दिया। इसने छात्रों और शिक्षकों के साथ-साथ राजनीतिक दलों को भी आक्रोशित कर दिया।
यह प्रदर्शन उस समय और बड़ा हो गया जब राजनीतिक दलों ने इसे अपना समर्थन दिया। 28 नवंबर को RJD ने विधानसभा में इस मुद्दे पर सरकार को चेताया भी था।
निष्कर्ष
बिहार में सरकारी नौकरियों की तैयारी करने वाले लाखों छात्रों के लिए नॉर्मलाइजेशन केवल एक तकनीकी प्रक्रिया नहीं है, बल्कि उनके भविष्य का सवाल है। चाहे वह राजनीतिक दल हों या छात्र समुदाय, हर कोई इस मुद्दे पर एक पारदर्शी और निष्पक्ष प्रणाली की मांग कर रहा है। अब देखना यह है कि सरकार इस दबाव को किस तरह संभालती है।