खेल पत्रकारिता में एक कहावत है: “आपके हर सवाल का जवाब पैसे में छुपा है।” लेकिन अगर बात सऊदी अरब के खेलों में भारी निवेश की हो, खासकर क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान के दौर में, तो जवाब सिर्फ “पैसा” नहीं है।
खेलों में इतना पैसा क्यों बहा रहे हैं?
देखिए, एक सीधी बात तो ये है कि ये निवेश फायदे का सौदा है। सऊदी अरब के पास 2023 में $925 बिलियन की संपत्ति वाला सॉवरेन वेल्थ फंड है, जो तेल की कमाई को और बड़े मुनाफे में बदलने के लिए काम करता है। 2022 में इस फंड ने $36.8 बिलियन का मुनाफा कमाया और 2016 से अब तक $51 बिलियन खेलों पर खर्च कर दिए।
लेकिन ये सब सिर्फ प्रिंस को खेलों का सुपरस्टार बनाने के लिए नहीं हो रहा। असली प्लान है सऊदी अरब की आर्थिक और भू-राजनीतिक स्थिति को मजबूत करना, ताकि “राजवंश” आराम से चलता रहे।
न्यूकासल यूनाइटेड और LIV गोल्फ से आगे
खेलों में निवेश करना उन देशों का तरीका है जो दुनिया को कहना चाहते हैं, “लो देखो, हम ग्लोबल स्टेज पर हैं!”
सऊदी अरब ने इस काम के लिए “वन-टाइम मेगा इवेंट्स” का रास्ता नहीं चुना। इसके बजाय, उन्होंने अलग-अलग खेलों में भारी-भरकम पैसा झोंका है।
2021 में न्यूकासल यूनाइटेड (इंग्लिश प्रीमियर लीग) और LIV गोल्फ में बड़े निवेश तो सुर्खियां बटोरते ही हैं। पर ये लोग छोटे-मोटे खेलों जैसे ईस्पोर्ट्स, रेसलिंग, मोटरस्पोर्ट्स, और यहां तक कि शतरंज और स्नूकर में भी पैसे बहा रहे हैं।
अब, भले ही स्नूकर में मुनाफा साफ नजर न आए, लेकिन असली दांव तो “ग्लोबल इमेज” सुधारने पर है।
स्पोर्ट्सवॉशिंग या स्मार्टवॉशिंग?
आजकल एक टर्म बड़ी चलन में है: “स्पोर्ट्सवॉशिंग”, यानी खेलों के जरिए अपनी इमेज सुधारने का खेल।
लेकिन बिन सलमान के लिए खेलों में निवेश महज इमेज सुधारने का नहीं, बल्कि बड़ी रणनीति का हिस्सा है। उनकी “विजन 2030” योजना देश की पूरी अर्थव्यवस्था और विदेश नीति को मॉडर्न बनाने की कोशिश कर रही है।
क्योंकि पैसा है, तो लोग मानते हैं!
भाई, सच्चाई ये है कि जब मोटी रकम दिखे, तो दुनिया बड़े आराम से “मानवाधिकार” जैसे मुद्दों पर चुप हो जाती है।
यूरोप और अमेरिका के बिजनेसमैन सोचते हैं, “अरे, सऊदी के पैसे में क्या बुराई है?” और बाकी तो इतिहास है।
तो क्या किया जा सकता है?
पश्चिमी देशों को ये तो बुरा लगता है कि सऊदी जैसे देश मेगा इवेंट्स की मेजबानी कर रहे हैं। लेकिन फिर खुद वही देश इस खर्चे को उठाने को तैयार भी नहीं हैं।
यानी, “अरे, गलत हो रहा है, लेकिन हम तो चाय पी रहे हैं।”
सऊदी की रणनीति का जीनियस यही है कि ये सब “सहमति से” हो रहा है। लोग खुद इनका प्रोडक्ट खरीदने को तैयार हैं, सरकारें ज़्यादा बोलने को नहीं और आलोचकों के पास वही घिसे-पिटे तर्क बचते हैं।
पैसे से बढ़कर सपना
आखिर में, ये सब सिर्फ खेलों का नहीं, सऊदी अरब के भविष्य और स्थिरता का खेल है।
और आज की स्थिति देखिए—सऊदी का प्लान काम कर रहा है।
क्योंकि जब खेलों की बात हो और पैसा इतना चमकदार हो, तो किसे आपत्ति होगी?