बांग्लादेश की पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना को भारत ने बड़ी राहत देते हुए उनके वीज़ा की अवधि बढ़ा दी है। यह फैसला ऐसे समय में आया है जब बांग्लादेश की अंतरिम सरकार ने हसीना को देश वापस भेजने की मांग की थी। भारत सरकार के इस कदम ने न सिर्फ बांग्लादेश सरकार को कड़ा संदेश दिया है, बल्कि शेख हसीना को भी अपनी अगली रणनीति बनाने का समय दे दिया है।
क्या है मामला?
शेख हसीना ने अपने पति, बहन और बच्चों के साथ भारत में शरण ली थी। बांग्लादेश में उनके खिलाफ छात्रों ने विद्रोह कर दिया था, जिसके बाद उन्हें देश छोड़कर भागना पड़ा। सूत्रों के मुताबिक, भारत ने केवल उनके वीज़ा की अवधि बढ़ाई है। हसीना को कानूनी तौर पर कोई राजनीतिक शरण नहीं दी गई है, क्योंकि भारतीय संविधान में ऐसा कोई प्रावधान नहीं है।
इस बीच, बांग्लादेश की अंतरिम सरकार ने एक बड़ा कदम उठाते हुए 97 लोगों के पासपोर्ट रद्द कर दिए हैं। इन लोगों पर अपहरण और हत्या जैसे गंभीर आरोप हैं। इस सूची में पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना का नाम भी शामिल है।
पासपोर्ट रद्द, अंतरराष्ट्रीय कोर्ट में मामला गरमाया
बांग्लादेश के पासपोर्ट और इमिग्रेशन विभाग ने घोषणा की कि 75 लोगों के पासपोर्ट रद्द कर दिए गए हैं। इनमें शेख हसीना का पासपोर्ट भी शामिल है। हाल ही में इंटरनेशनल क्रिमिनल ट्रिब्यूनल (ICT) ने शेख हसीना के खिलाफ दूसरा गिरफ्तारी वारंट जारी किया है। अदालत ने आदेश दिया कि उन्हें 11 अन्य लोगों के साथ गिरफ्तार कर अदालत में पेश किया जाए।
विशेषज्ञों के अनुसार, यह मामला अब अंतरराष्ट्रीय स्तर पर तूल पकड़ रहा है। बांग्लादेश सरकार ने साफ कर दिया है कि शेख हसीना पर 2009 में हुए बांग्लादेश राइफल्स (BDR) विद्रोह में 74 लोगों की हत्या का मामला दर्ज है।
हसीना का भारत में भविष्य क्या होगा?
भारत में शेख हसीना के भविष्य को लेकर अंतरराष्ट्रीय मामलों के जानकार लगातार चर्चा कर रहे हैं। केंद्र सरकार ने अपने रुख को स्पष्ट करते हुए कहा है कि हसीना को अपनी अगली रणनीति खुद तय करनी होगी।
सरकार के इस रुख से साफ हो गया है कि भारत किसी भी दबाव में नहीं आएगा। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की कूटनीति और बांग्लादेश की वर्तमान स्थिति को देखते हुए यह एक नपे-तुले फैसले का संकेत है।
बांग्लादेश सरकार की मुश्किलें बढ़ीं
बांग्लादेश की अंतरिम सरकार, जिसमें डॉ. यूनुस का नाम प्रमुख है, ने भारत से शेख हसीना को वापस भेजने की मांग की थी। लेकिन भारत ने इसे ठुकरा दिया। इससे बांग्लादेश के मौजूदा प्रशासन को बड़ा झटका लगा है।
सूत्र बताते हैं कि भारत सरकार का मानना है कि हसीना के खिलाफ लगाए गए आरोप राजनीतिक रूप से प्रेरित हो सकते हैं। बांग्लादेश की सत्ता में अस्थिरता का फायदा उठाने के लिए वहां की अंतरिम सरकार इस तरह के कदम उठा रही है।
हसीना से पूछताछ की तैयारी
बांग्लादेश की राष्ट्रीय स्वतंत्र जांच आयोग के सदस्य अब भारत आने की तैयारी कर रहे हैं। वे यहां आकर शेख हसीना से 2009 के BDR विद्रोह में हुई हत्याओं के मामले में पूछताछ करना चाहते हैं।
भारत सरकार ने अभी तक इस पर कोई आधिकारिक प्रतिक्रिया नहीं दी है। हालांकि, कूटनीतिक गलियारों में चर्चा है कि भारत सरकार इस मुद्दे को बेहद गंभीरता से देख रही है।
मोदी सरकार का सख्त संदेश
विश्लेषकों का मानना है कि भारत ने इस फैसले के जरिए बांग्लादेश को स्पष्ट संदेश दिया है कि वह अपनी कूटनीतिक नीतियों में किसी तरह का हस्तक्षेप बर्दाश्त नहीं करेगा।
शेख हसीना की वीज़ा अवधि बढ़ाकर भारत ने यह भी दिखा दिया है कि वह अपने पड़ोसियों के आंतरिक मामलों में दखल नहीं देगा, लेकिन किसी भी राजनीतिक उत्पीड़न के खिलाफ मानवाधिकारों की रक्षा के लिए खड़ा रहेगा।
क्यों अहम है यह मामला?
2009 में बांग्लादेश राइफल्स विद्रोह के दौरान हुए नरसंहार के मामले में शेख हसीना पर गंभीर आरोप हैं। हालांकि, कई विशेषज्ञों का कहना है कि यह मामला सत्ता संघर्ष का नतीजा है और राजनीतिक हितों को साधने के लिए शेख हसीना को बलि का बकरा बनाया जा रहा है।
क्या होगा हसीना का अगला कदम?
शेख हसीना फिलहाल भारत में सुरक्षित हैं, लेकिन उनके पास समय सीमित है। उन्हें तय करना होगा कि वे अपनी राजनीतिक विरासत बचाने के लिए क्या कदम उठाएंगी।
उनकी भारत में मौजूदगी पर बांग्लादेश की विपक्षी पार्टियों की भी नजर है। ऐसे में यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या शेख हसीना अपनी पार्टी को वापस सत्ता में ला पाती हैं या बांग्लादेश की राजनीति में कोई नया मोड़ आता है।
इस पूरे घटनाक्रम ने भारत-बांग्लादेश के रिश्तों में एक नया मोड़ ला दिया है। जहां एक ओर बांग्लादेश की सरकार भारत पर दबाव बना रही है, वहीं भारत ने अपने रुख से यह साफ कर दिया है कि कूटनीति में कोई जल्दबाजी नहीं होगी।