शिक्षा क्षेत्र में सरकारी भर्ती प्रक्रिया अक्सर विवादों और अदालती मामलों में उलझी रहती है। ऐसा ही एक मामला उत्तराखंड में 2,906 शिक्षकों की भर्ती से जुड़ा है, जिसमें एनआईओएस (नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ ओपन स्कूलिंग) से डीएलएड (डिप्लोमा इन एलीमेंट्री एजुकेशन) अभ्यर्थियों को बाहर किए जाने पर विवाद खड़ा हो गया है।
क्या है पूरा मामला?
शुरुआत में प्रदेश सरकार ने शिक्षकों की इस भर्ती प्रक्रिया में बीएड और एनआईओएस से डीएलएड अभ्यर्थियों को शामिल किया था। लेकिन बाद में अचानक निर्णय बदलते हुए एनआईओएस से डीएलएड अभ्यर्थियों को भर्ती प्रक्रिया से बाहर कर दिया गया। सरकार का तर्क था कि ये अभ्यर्थी प्राथमिक शिक्षक बनने के लिए अर्ह नहीं हैं।
इस निर्णय से नाराज एनआईओएस डीएलएड अभ्यर्थियों ने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया। सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में स्पष्ट कहा कि एनआईओएस से डीएलएड धारक प्राथमिक शिक्षक बनने के पात्र हैं और बीएड धारकों को प्राथमिक स्तर पर नियुक्त करने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए।
भर्ती प्रक्रिया में आया नया मोड़
सुप्रीम कोर्ट के इस आदेश के बावजूद, जब शिक्षक भर्ती प्रक्रिया के पांच चरण पूरे हुए और 1,800 से अधिक अभ्यर्थियों को नियुक्तिपत्र मिल गए, तब भी एनआईओएस डीएलएड अभ्यर्थियों को भर्ती में शामिल नहीं किया गया। इससे नाराज होकर ये अभ्यर्थी दोबारा हाईकोर्ट पहुंच गए।
हाईकोर्ट का हस्तक्षेप
एनआईओएस डीएलएड अभ्यर्थियों की याचिका पर सुनवाई करते हुए, उत्तराखंड हाईकोर्ट ने शिक्षा निदेशालय और प्रदेश सरकार से इस मामले में जवाब मांगा है। कोर्ट ने पूछा है कि जब सुप्रीम कोर्ट ने इन अभ्यर्थियों को पात्र माना है, तो फिर उन्हें भर्ती प्रक्रिया से बाहर क्यों रखा गया। अदालत ने शासन और शिक्षा निदेशालय को 24 दिसंबर तक स्थिति स्पष्ट करने के निर्देश दिए हैं।
शासन और निदेशालय की दुविधा
शिक्षा निदेशक आरएल आर्य ने कहा कि अदालत के आदेश का पालन किया जाएगा और संबंधित विभाग 24 दिसंबर तक अपना पक्ष प्रस्तुत करेंगे। लेकिन यह स्पष्ट नहीं है कि क्या सरकार सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद भी अपने पुराने निर्णय पर कायम रहेगी या एनआईओएस डीएलएड अभ्यर्थियों को भर्ती प्रक्रिया में शामिल किया जाएगा।
अभ्यर्थियों की नाराजगी और उम्मीद
एनआईओएस डीएलएड अभ्यर्थी अपनी नाराजगी जताते हुए इसे उनके अधिकारों का हनन मानते हैं। उनका कहना है कि सुप्रीम कोर्ट से पात्रता मिलने के बावजूद, उन्हें भर्ती प्रक्रिया से बाहर करना न केवल अन्यायपूर्ण है, बल्कि उनके भविष्य के साथ खिलवाड़ भी है। अब उनकी निगाहें हाईकोर्ट के अगले आदेश पर टिकी हैं।
भर्ती प्रक्रिया और शासन के लिए चुनौती
यह मामला सिर्फ एक अदालती आदेश का पालन करने तक सीमित नहीं है। यह प्रदेश सरकार और शिक्षा विभाग के लिए एक बड़ा प्रश्नचिह्न खड़ा करता है कि वे भर्ती प्रक्रिया में पारदर्शिता और न्याय सुनिश्चित करने में क्यों असफल हुए।
क्या होगा आगे?
24 दिसंबर को हाईकोर्ट के आदेश के बाद ही यह स्पष्ट होगा कि एनआईओएस डीएलएड अभ्यर्थियों का भविष्य क्या होगा। यह मामला न केवल प्रभावित अभ्यर्थियों के लिए, बल्कि पूरी शिक्षा प्रणाली के लिए एक अहम मील का पत्थर साबित हो सकता है। सरकार के लिए यह जरूरी है कि वह समय रहते उचित कदम उठाए, ताकि इस तरह के विवाद भविष्य में न दोहराए जाएं।
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