भारतीय राजनीति में बाबा साहेब भीमराव अंबेडकर के नाम पर छिड़ी बहस के बीच संसद में बुधवार को गृह मंत्री अमित शाह की टिप्पणी पर जमकर हंगामा हुआ। कांग्रेस ने आरोप लगाया कि शाह ने अंबेडकर का अपमान किया, जबकि भाजपा ने इसका पुरजोर बचाव किया।
शाह ने राज्यसभा में कहा, “आजकल अंबेडकर, अंबेडकर, अंबेडकर कहना फैशन बन गया है। अगर भगवान का नाम इतना लिया होता, तो स्वर्ग मिल जाता।” उन्होंने यह भी कहा कि अंबेडकर ने नेहरू के मंत्रिमंडल से इस्तीफा इसलिए दिया क्योंकि वे “उपेक्षित” और “असंतुष्ट” थे।
इस पर प्रतिक्रिया देते हुए कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने ट्वीट किया, “…यह दिखाता है कि बीजेपी और आरएसएस के नेताओं के दिल में बाबा साहेब अंबेडकर के लिए नफरत है। उनकी नफरत इतनी है कि वे उनके नाम से चिढ़ते हैं। यही वे लोग हैं जिनके पूर्वजों ने बाबा साहेब का पुतला जलाया और संविधान बदलने की बात की।”
क्या सच में बीजेपी के ‘पूर्वजों’ ने अंबेडकर का पुतला जलाया था?
इतिहास गवाह है कि 12 दिसंबर 1949 को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के कार्यकर्ताओं ने अंबेडकर और पंडित जवाहरलाल नेहरू के पुतले जलाए थे।
इस घटना का कारण हिंदू कोड बिल था, जो विवाह और उत्तराधिकार जैसे मामलों में महिलाओं को अधिक अधिकार देने के उद्देश्य से लाया गया था। इस बिल का संघ ने कड़ा विरोध किया।
इतिहासकार रामचंद्र गुहा ने अपनी किताब इंडिया आफ्टर गांधी में लिखा है, “11 दिसंबर 1949 को दिल्ली के रामलीला मैदान में आरएसएस ने एक जनसभा आयोजित की। वक्ताओं ने हिंदू कोड बिल को ‘हिंदू समाज पर परमाणु बम’ बताया। अगले दिन, संघ कार्यकर्ताओं ने विधानसभा भवन तक मार्च किया, ‘डाउन विद हिंदू कोड बिल’ और ‘पंडित नेहरू खत्म हो’ जैसे नारे लगाए। उन्होंने अंबेडकर और नेहरू के पुतले जलाए और शेख अब्दुल्ला की कार में तोड़फोड़ की।”
आरएसएस, गोलवलकर और सावरकर की संविधान पर राय
डॉ. अंबेडकर ने कानून मंत्री पद से इस्तीफा देने के पीछे हिंदू कोड बिल पर नेहरू के साथ असहमति को मुख्य कारण बताया था। परंतु, इसे पारित करने का विरोध केवल दक्षिणपंथी ही नहीं, कांग्रेस के कुछ गुट भी कर रहे थे।
अंबेडकर ने हिंदू कोड बिल पर कहा था, “हिंदू समाज की आत्मा में वर्ग और लिंग के बीच असमानता को छोड़ देना और केवल आर्थिक समस्याओं से संबंधित कानून पारित करना हमारे संविधान का मजाक उड़ाने जैसा है।”
आरएसएस के मुखपत्र ऑर्गेनाइजर ने नवंबर 1949 में हिंदू कोड बिल की आलोचना करते हुए इसे ‘हिंदुओं के विश्वास पर सीधा हमला’ करार दिया। 7 दिसंबर 1949 को एक संपादकीय में लिखा गया, “हम हिंदू कोड बिल का विरोध करते हैं। यह विदेशी और अनैतिक सिद्धांतों पर आधारित है।”
एमएस गोलवलकर ने बंच ऑफ थॉट्स में लिखा था, “हमारा संविधान विभिन्न पश्चिमी देशों के संविधान से कुछ अनुच्छेदों को जोड़कर बनाया गया एक असंगत मिश्रण है। इसमें हमारा कुछ भी मौलिक नहीं है।”
विनायक दामोदर सावरकर ने भी महिला और मनुस्मृति में संविधान की आलोचना करते हुए कहा, “भारत के नए संविधान में कुछ भी भारतीय नहीं है। मनुस्मृति, जो वैदिक ग्रंथों के बाद सबसे पूजनीय है, हमारे हिंदू राष्ट्र की संस्कृति का आधार है। आज भी करोड़ों हिंदू अपने जीवन और आचरण में इसके नियमों का पालन करते हैं।”
कांग्रेस और भाजपा के बीच जारी बहस
अंबेडकर के विचारों और उनकी विरासत को लेकर भाजपा और कांग्रेस के बीच वर्चस्व की लड़ाई लंबे समय से चल रही है। भाजपा का दावा है कि उसने अंबेडकर के आदर्शों को सम्मान दिया है, जबकि कांग्रेस इसे महज राजनीतिक हथकंडा बताती है।
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि बाबा साहेब अंबेडकर को लेकर छिड़ी बहस सिर्फ ऐतिहासिक विवादों तक सीमित नहीं है, बल्कि यह सामाजिक न्याय और सत्ता में वर्चस्व के मुद्दों को भी छूती है।
आपका क्या मत है? क्या यह बहस बाबा साहेब के मूल सिद्धांतों को समझने की कोशिश है या सिर्फ राजनीति? अपनी राय हमें भेजें।