सुप्रीम कोर्ट ने भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 498A, जो महिला के पति और उसके परिवार द्वारा क्रूरता के मामलों में सुरक्षा प्रदान करती है, के बढ़ते दुरुपयोग पर गहरी चिंता जताई है। कोर्ट ने कहा कि यह प्रावधान अब पत्नी और उसके परिवार द्वारा पति और उसके परिवार के खिलाफ व्यक्तिगत प्रतिशोध लेने के लिए इस्तेमाल किया जाने लगा है, जो कानून के उद्देश्य के विपरीत है।
सुप्रीम कोर्ट के न्यायमूर्ति बी नागरत्ना और कोटिस्वर सिंह की पीठ ने मंगलवार को इस मामले में टिप्पणी करते हुए कहा, “IPC की धारा 498A में संशोधन का उद्देश्य महिला के प्रति पति और उसके परिवार द्वारा की गई क्रूरता को रोकना था, और इस पर राज्य द्वारा त्वरित हस्तक्षेप सुनिश्चित करना था। हालांकि, हाल के वर्षों में जब देशभर में वैवाहिक विवादों की संख्या बढ़ी है, और विवाह संस्था में तनाव और असहमति भी बढ़ी है, तो यह देखा गया है कि धारा 498A का दुरुपयोग निजी प्रतिशोध का साधन बन गया है।”
न्यायमूर्ति नागरत्ना ने इस पर विचार करते हुए कहा कि “वैवाहिक विवादों में यदि सामान्य और अस्पष्ट आरोप लगाए जाते हैं, तो इसका दुरुपयोग हो सकता है और इससे पत्नी या उसके परिवार को कानूनी प्रक्रिया का गलत फायदा उठाने का मौका मिल सकता है।”
कोर्ट इस मामले की सुनवाई कर रही थी, जिसमें एक व्यक्ति, उसके माता-पिता और तीन बहनों के खिलाफ तेलंगाना हाई कोर्ट के उस आदेश को चुनौती दी गई थी, जिसमें उनके खिलाफ दायर आरोपों को खारिज करने की मांग को अस्वीकार कर दिया गया था।
कोर्ट ने आईपीसी की धारा 498A और दहेज निषेध अधिनियम 1961 के तहत दायर FIR को रद्द करते हुए कहा, “FIR में आरोप vague और सामान्य हैं। पत्नी ने सिर्फ यह दावा किया है कि ‘उसके पति ने उसे तंग किया और बाकी परिवार वालों ने उसे उकसाया’, लेकिन किसी विशेष घटना का विवरण या समय, तारीख, स्थान या तरीके का कोई उल्लेख नहीं किया गया है। इसलिए FIR में ठोस आरोप नहीं हैं।”
पीठ ने यह भी कहा, “इस मामले के तथ्यों को देखते हुए और FIR की स्थिति को ध्यान में रखते हुए, यह पाया गया कि पत्नी ने 03 अक्टूबर 2021 को पति से तर्क-वितर्क के बाद अपने वैवाहिक घर को छोड़ दिया था। बाद में वह वापस आई और यह भरोसा दिलाया कि वह अपने पति के साथ अच्छे रिश्ते बनाए रखेगी। लेकिन वह फिर से घर छोड़कर चली गई। जब पति ने 13 दिसंबर 2021 को तलाक की कानूनी नोटिस भेजी, तो पत्नी ने 01 फरवरी 2022 को यह FIR दर्ज कराई। इसलिए, यह FIR एक वास्तविक शिकायत नहीं है, बल्कि पति और उसके परिवार के खिलाफ प्रतिशोध लेने का एक प्रयास प्रतीत होती है।”
कोर्ट ने यह भी कहा कि यह तथ्य महत्वपूर्ण है कि महिला ने न केवल अपने पति को छोड़ दिया है, बल्कि वह अपने दो बच्चों को भी छोड़ चुकी है, जो अब पिता की देखरेख में हैं।
कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि महिला के परिवार के सदस्य, जिनका नाम FIR में था, का इस मामले से कोई लेना-देना नहीं था। वे बिना किसी कारण के इस कानूनी मामले में घसीटे गए हैं। कोर्ट ने कहा, “अगर एक पारिवारिक विवाद में बिना ठोस आरोप के पति के परिवार के सभी सदस्यों को आरोपी बना दिया जाता है, तो इसे प्रारंभिक अवस्था में ही नकारा जाना चाहिए।”
कोर्ट ने आगे कहा कि “यह एक सामान्य बात है कि जब वैवाहिक विवाद होते हैं, तो पति के परिवार के सभी सदस्यों को इसमें घसीट लिया जाता है, लेकिन ऐसी सामान्य और अस्पष्ट आरोपों पर किसी भी अपराधी कार्रवाई का आधार नहीं बनाया जा सकता। अदालतों को ऐसे मामलों में सतर्क रहना चाहिए ताकि कानूनी प्रावधानों का दुरुपयोग न हो और निर्दोष परिवार के सदस्यों को अनावश्यक परेशानी का सामना न करना पड़े।”
अंत में, कोर्ट ने कहा कि “उन परिवार के सदस्यों के खिलाफ FIR में दायर आरोप निराधार हैं, जो अलग-अलग शहरों में रहते हैं और पति के साथ उसके वैवाहिक घर में नहीं रहते। इसलिए, उन्हें अपराधी मुकदमे में घसीटना कानून के दुरुपयोग के समान होगा।”
यह आदेश इस बात की ओर इशारा करता है कि सुप्रीम कोर्ट ने वैवाहिक विवादों में दुरुपयोग के खिलाफ गंभीर चेतावनी दी है और इस तरह के मामलों में कानूनी प्रक्रिया के उचित उपयोग का पक्ष लिया है।