कोविड-19 के बाद खतरनाक खेलों का बुखार बढ़ता ही जा रहा है। सुनने में अजीब लगेगा, लेकिन अब करीब 49 करोड़ लोग सोचते हैं, “चलो ज़िंदगी को थोड़ा और खतरे में डालें, वैसे भी किसे बोरिंग लाइफ चाहिए!”
पहले ये खेल सिर्फ उन लोगों तक सीमित थे जो या तो बहुत बहादुर थे या फिर पागल। बेस जंपिंग, फ्री सोलो क्लाइम्बिंग, बिग वेव सर्फिंग, और डाउनहिल माउंटेन बाइकिंग जैसे नाम सुनकर आम आदमी को लगता है, “यार, मुझे तो सीढ़ियों से उतरते वक्त भी डर लगता है!” लेकिन अब ये खेल धीरे-धीरे सबके पसंदीदा बन रहे हैं।
तो सवाल उठता है—लोग अपनी जान जोखिम में डालकर ये सब क्यों करते हैं?
क्या ये बस “अरे भाई, लाइफ में कुछ नया करो” वाला मामला है, या इसके पीछे कोई गहरी वजह है? चलिए, हंसते-हंसते इस गंभीर सवाल का जवाब ढूंढते हैं।
खतरनाक खेल आखिर हैं क्या?
सरल शब्दों में, ये वो खेल हैं जहाँ अगर गलती हो गई तो चोट-मोच की बात छोड़िए, सीधे भगवान के पास रिपोर्ट करनी पड़ सकती है।
लोग क्यों खेलते हैं ये ‘जानलेवा’ खेल?
हमने इस सवाल पर रिसर्च की और पाया कि खतरनाक खेलों में भाग लेने के पीछे 5 बड़ी वजहें हैं। आप इन्हें पढ़कर शायद बोलें, “ओह, अब समझ आया!”
1. कनेक्शन: प्रकृति से और दोस्तों से!
इन लोगों को लगता है कि जब वे 1000 फीट ऊंचाई पर होते हैं, तो जिंदगी की सारी टेंशन नीचे रह जाती है। बॉस का ईमेल? कौन सा ईमेल?
इसके अलावा, इनकी ‘डेयरडेविल’ गैंग इन्हें अलग लेवल की खुशी देती है। आप समझ सकते हैं, ये वो लोग हैं जिनकी फ्रेंडशिप डे गिफ्ट भी शायद पैराशूट होती है।
2. पर्सनालिटी: रोमांच या इमोशनल थेरेपी?
सबको लगता है कि ये लोग बस एड्रेनलिन के पीछे भागते हैं। लेकिन सच्चाई ये है कि कई लोग अपने इमोशंस को संभालने के लिए ऐसा करते हैं। कुछ के लिए ये खेल एक फीलिंग्स थेरेपी जैसा है—मनोवैज्ञानिक कनेक्शन, भाई!
3. गोल्स: जीतने का जुनून!
आपने देखा होगा, बचपन में कुछ लोग साइकिल चलाने के लिए बार-बार गिरते थे। बस, यही बात है। इन लोगों के लिए अपने आपको हर बार बेहतर बनाना सबसे बड़ा लक्ष्य होता है।
और हां, इनके गोल्स में फ्लेक्स भी होता है। “अरे, तुमने कब स्काईडाइविंग की?”
4. जोखिम: रोमांच का असली मज़ा!
कहते हैं, “डर के आगे जीत है।” लेकिन इनका नारा है—“डर के आगे… और डर है, लेकिन वो मजेदार है!”
ये लोग रिस्क मैनेजमेंट में इतने माहिर होते हैं कि इनसे सीखे हुए टिप्स शायद स्टॉक मार्केट में भी काम आ जाएं।
5. एडिक्शन-जैसी फीलिंग्स: बिना खेल के सूना-सूना लगता है।
जब ये लोग खतरनाक खेल नहीं करते, तो मूड वैसा ही हो जाता है जैसे पिज़्ज़ा में चीज़ न हो। इन्हें लगता है कि उनकी जिंदगी का असली मसाला गायब हो गया है।
क्या ये सिर्फ एड्रेनलिन की बात है?
बिलकुल नहीं! रिसर्च कहती है कि ये खेल लोगों के इमोशनल हेल्थ को भी बेहतर बना सकते हैं। कई लोग इन खेलों का इस्तेमाल अपने अंदर दबे हुए इमोशंस को बाहर लाने के लिए करते हैं।
आगे क्या?
मेरी रिसर्च अभी जारी है। मैं कुछ और डेयरडेविल्स से बात कर रहा हूँ ताकि उनके दिमाग के खतरनाक कोने समझ सकूं।
मेरा अगला सवाल यह है—क्या ये लोग सच में ‘सुपरह्यूमन’ हैं, या फिर हमसे अलग सोचते हैं?
तो अगली बार जब आप किसी को 200 फीट ऊंचाई से कूदते देखें, तो ये मत सोचिए कि वो बस मस्ती कर रहा है। उसके पीछे एक गहरी कहानी हो सकती है।
वैसे, आप क्या सोचते हैं? कभी स्काईडाइविंग करेंगे, या फिर जमीन पर रहकर ही ताली बजाएंगे? 😉
आपके सुझाव?
अगर ये पढ़कर आपको हंसी आई या कोई सवाल आया, तो नीचे कॉमेंट जरूर करें। और हां, अगली बार जब आप बोर हों, तो “खतरनाक खेल” का प्लान मत बना लेना। पहले ट्रेनिंग लीजिए, फिर प्यार से कूदिए! 😄