सीरिया में लंबे समय से चल रहे गृह युद्ध ने हाल ही में एक ऐतिहासिक मोड़ लिया है। विद्रोही गुटों ने राजधानी दमिश्क पर कब्जा कर लिया, और राष्ट्रपति बशर अल-असद देश छोड़कर रूस में शरण लेने पर मजबूर हो गए। यह घटनाक्रम न केवल सीरिया के लिए बल्कि पूरे मध्य-पूर्व की राजनीति के लिए एक नई दिशा तय कर रहा है।
दमिश्क पर विद्रोहियों का नियंत्रण
दमिश्क, जो एक दशक से असद शासन का गढ़ था, अब विद्रोहियों के नियंत्रण में है। फ्री सीरियन आर्मी और कुर्दिश गुटों के समन्वित प्रयासों से राजधानी पर कब्जा संभव हुआ। यह जीत केवल सैन्य नहीं बल्कि प्रतीकात्मक भी है, क्योंकि यह असद शासन के पतन को दर्शाता है।
विद्रोहियों ने सरकारी भवनों और संस्थानों पर कब्जा करते हुए यह सुनिश्चित किया कि असद समर्थक ताकतें पूरी तरह निष्क्रिय हो जाएं। इस जीत ने सीरिया की सत्ता संरचना को उलट दिया और एक नई शुरुआत की नींव रखी।
असद का रूस में पलायन
दमिश्क पर नियंत्रण के बाद बशर अल-असद ने सीरिया छोड़ दिया। रूस, जो असद का सबसे मजबूत समर्थक रहा है, ने उन्हें शरण दी। असद ने अपने जीवन को खतरे में देखते हुए पहले तटीय क्षेत्रों में शरण ली और बाद में रूस रवाना हो गए।
रूस ने इस कदम को “मानवीय आधार पर सहायता” करार दिया, लेकिन यह स्पष्ट है कि यह उनके अपने क्षेत्रीय हितों को सुरक्षित रखने का एक प्रयास है। क्रेमलिन ने संकेत दिया है कि वह सीरिया में शांति स्थापना के लिए अब विद्रोही गुटों के साथ काम करने को तैयार है।
गृहयुद्ध और इसके पीछे की कहानी
सीरिया का संघर्ष 2011 में शुरू हुआ, जब अरब स्प्रिंग की लहरें देश तक पहुंचीं। शांतिपूर्ण विरोध प्रदर्शन, जो राजनीतिक और सामाजिक सुधारों की मांग कर रहे थे, जल्द ही असद शासन की क्रूर प्रतिक्रिया के कारण एक हिंसक संघर्ष में बदल गए।
असद सरकार ने विद्रोह को कुचलने के लिए हर संभव उपाय किए, जिसमें रासायनिक हथियारों का उपयोग और निर्दोष नागरिकों पर हमले शामिल थे। यह संघर्ष धीरे-धीरे क्षेत्रीय और अंतरराष्ट्रीय शक्तियों के लिए एक जंग का मैदान बन गया, जहां रूस और ईरान ने असद का समर्थन किया, जबकि अमेरिका और पश्चिमी देश विद्रोही गुटों के पक्ष में खड़े थे।
सीरिया का भविष्य: चुनौतियां और उम्मीदें
विद्रोहियों के कब्जे के बाद अब सीरिया के सामने सबसे बड़ी चुनौती राजनीतिक स्थिरता और सत्ता का पुनर्गठन है। विद्रोही गुटों को अपने आपसी मतभेदों को सुलझाकर एक स्थायी सरकार बनाने की आवश्यकता है।
इसके साथ ही, सीरिया में अभी भी बाहरी ताकतों का गहरा प्रभाव है। रूस, ईरान, तुर्की और अमेरिका इस नए परिदृश्य में अपनी भूमिका तय करने के लिए तैयार हैं।
भारत पर प्रभाव
सीरिया में असद का पतन और राजनीतिक अस्थिरता का भारत पर भी व्यापक प्रभाव पड़ सकता है।
- ऊर्जा सुरक्षा पर असर:
मध्य-पूर्व भारतीय ऊर्जा आयात का मुख्य स्रोत है। सीरिया में अस्थिरता और क्षेत्रीय संघर्षों के बढ़ने से तेल की कीमतों में उछाल हो सकता है, जिसका सीधा असर भारतीय अर्थव्यवस्था पर पड़ेगा। - आतंकवाद का खतरा:
सीरिया में बढ़ती अस्थिरता और विद्रोही गुटों की आपसी लड़ाई से आतंकवादी संगठनों को पनपने का मौका मिल सकता है। भारत, जो पहले से ही आतंकवाद से जूझ रहा है, को सुरक्षा संबंधी नई चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है। - आर्थिक और व्यापारिक संबंध:
भारत और मध्य-पूर्व के देशों के बीच व्यापारिक संबंध मजबूत हैं। सीरिया की अस्थिरता से इन संबंधों पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है। विशेषकर, फारस की खाड़ी के आसपास व्यापार मार्गों की सुरक्षा सुनिश्चित करना भारत के लिए चुनौतीपूर्ण होगा। - भविष्य की रणनीति:
भारत को इस क्षेत्र में अपनी रणनीति दोबारा तय करनी होगी। मध्य-पूर्व में स्थिरता बनाए रखने के लिए भारत को कूटनीतिक भूमिका निभानी पड़ सकती है। साथ ही, भारत को संयुक्त राष्ट्र और अन्य वैश्विक संगठनों के माध्यम से शांति स्थापना में योगदान देना होगा।
निष्कर्ष
सीरिया में दमिश्क पर विद्रोहियों का कब्जा और बशर अल-असद का पलायन क्षेत्रीय और अंतरराष्ट्रीय राजनीति में एक बड़ा बदलाव लाया है। हालांकि यह घटनाक्रम सीरिया की जनता के लिए नई उम्मीदें लेकर आया है, लेकिन चुनौतियों का अंत नहीं हुआ है।
भारत के लिए यह समय है कि वह इस क्षेत्र में अपनी उपस्थिति को मजबूत करे और उभरती परिस्थितियों के साथ सामंजस्य बैठाए। सीरिया का संघर्ष एक महत्वपूर्ण सबक है कि स्थिरता और शांति का कोई विकल्प नहीं है।